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एक खेल दो स्वर्ण पदक. कुछ ऐसी ही कहानी कल हमारे एथलीटों ने एशियन गेम्स में दोहराई. कल हमने आशा की थी एशियन गेम्स में स्वर्णिम बरसात होगी. बरसात तो नहीं हुई लेकिन बारिश की फुहार ज़रूर पड़ी. कल यानी एशियन गेम्स के 13वें दिन हमने तीन स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक जीते.
दिन का पहला स्वर्ण पदक हमको अश्विनी अकुन्जी ने दिलाया. महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में 56.15 सेकंड का समय निकालकर उन्होंने यह कारनामा किया. इसी स्पर्धा में जाउना मुर्मू सेकंड के पांचवें हिस्से से कांस्य पदक जीतने से चूकीं.
महिलाओं की 400 मीटर की बाधा दौड़ के बाद समय था पुरुषों की 400 मीटर की बाधा दौड़ का. पुरुषों की 400 मीटर की बाधा दौड़ में हालांकि भारत का प्रतिनिधित्व जोसफ कर रहे थे लेकिन उम्मीद कम थी कि वह स्वर्ण पदक जीतेंगे. लेकिन लगता है कि इस बार के एशियन गेम्स में हमारे खिलाड़ियों को इतिहास रचने का जैसे जुनून सा बन गया है और जब उनसे उम्मीद कम होती है तभी वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देते हैं. और पुरुषों की बाधा दौड़ में भी कुछ ऐसा हुआ. 29 वर्षीय जोसफ ने लेन तीन में दौड़ते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. उन्होंने 49.96 सेकंड का समय लेकर भारत को एथलेटिक्स में दिन का दूसरा गोल्ड दिलाया. गौर की बात यह है कि दोहा एशियन खेलों में वह स्वर्ण पदक से चूक गए थे. लेकिन इस बार वह स्वर्ण पदक जीतने का पूरा फैसला करके आए थे.
12 साल बाद
12 साल बाद विकास कृष्ण ने डिंको सिंह की याद ताज़ा कर दी जब उन्होंने पुरुषों की 60 किग्रा (लाइटवेट) श्रेणी में चीनी मुक्केबाज क्विंग हू को 5-4 से हरा देश के लिए तीसरा स्वर्ण पदक जीता.
आज विश्व नंबर एक और ओलंपिक पदक विजेता भिवानी के विजेंद्र सिंह से सभी को आशा है कि वह स्वर्ण पदक ज़रूर जीतेंगे. और होना भी ऐसा चाहिए क्योंकि राष्ट्रमंडल खेलों में यह मुक्केबाज़ स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया था.
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