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हमने राष्ट्रमंडल खेलों का भव्य और शानदार आयोजन कर दुनिया को दिखा दिया कि हम भारतीयों को कम में आंकना गलत होगा. खेल शुरू होने से पहले पूरी दुनिया ने हमारी आयोजन क्षमता पर सवालिया निशान लगा दिया था. कुछ देशों ने तो खेलों को स्थगित करने की मांग तक कर दी थी. शायद उन्हें यह नहीं पता था कि अब हम भारतीय केवल कृषि प्रधान देश नहीं है बल्कि अब हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन गए हैं. हममें कुछ भी करने का दम है, हम किसी भी आयोजन को सफलता पूर्वक करने का माद्दा रखते हैं. लेकिन क्या दम और माद्दा रखने से ही किसी भी आयोजन को हम सफलतापूर्वक निभा सकते हैं.
आजकल ग्वांगझाऊ में 16वें एशियन गेम्स चल रहे हैं. अभी तक के एशियन गेम्स की सबसे खास बात ‘इसका घोटालों से मुक्त होना है.’ न तो किसी ने इसके आयोजन पर कोई ऊँगली उठाई, और ना कोई मामला उभरकर सामने आया. सभी क्षेत्रों में दस में दस. लेकिन ऐसा राष्ट्रमंडल खेलों के साथ क्यों नहीं हुआ? क्यों राष्ट्रमंडल खेलों को एक भ्रष्ट खेल कहा गया. कौन है इसका जिम्मेदार हम, आप या नेता.
गलती किसी एक की नहीं है जिम्मेदार सभी हैं. आज राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े भ्रष्टाचार मामलों में केवल नेताओं पर अंगुली उठी है. ठेकेदार, सामान प्रदान करने वाली कम्पनियों, के साथ-साथ बहुत से जुड़े लोगों पर भी अंगुलियाँ उठाई गई हैं. हम इसलिए जिम्मेदार हैं क्योंकि हमने खड़े होकर सिर्फ तमाशा देखा, किसी ने आवाज उठाने की कोशिश भी नहीं की. और ऐसी स्थिति पैदा हुई कि अच्छा होने के बाद भी खेलों में भ्रष्टाचार का काला दाग लग गया.
अब हम बात ओलंपिक और एशियन गेम्स आयोजन करने की कर रहे हैं. दोनों खेल राष्ट्रमंडल खेलों से बहुत बड़े हैं. इन दोनों बहुराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन करने के लिए हमें बहुत सी तैयारी करनी होगी. स्टेडियम के साथ-साथ कई गुना बड़ा खेल गांव बनाना होगा और सभी कार्यों के लिए अरबों रुपये का धन चाहिए होगा. और जहां धन होगा वहां भ्रष्टाचार होगा. क्योंकि हम लोगों की तो प्रवृत्ति ही है “राम- राम जपना देश का माल अपना.”
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