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कल तो थे हम पांचवें स्थान पर, परन्तु आज हम हैं सातवें पर. कुछ ऐसा ही हाल रहा हमारा एशियन गेम्स के तीसरे दिन. जहां एक तरफ़ हमने अपने से कमज़ोर हॉगकॉग को पुरुष हॉकी में 7-0 से रौंदा, वहीं वाटर पोलो में 38-2 की शर्मनाक हार हमें झेलनी पड़ी. कुल मिलाकर तीसरे दिन हमने सिर्फ दो पदक जीते और स्वर्ण पदक से कोसों दूर दिखे.
दिन का पहला पदक भारत को पुरुष की युगल टेनिस स्पर्धा में मिला. टेनिस के इस सेमीफाइनल मुकाबले में भले ही सोमदेव और सनम सिंह की जोड़ी ताइवान की जोड़ी से हार गई हो लेकिन हमने इसके बावजूद भी कांस्य पदक जीता. लेकिन अगर सोमदेव और सनम सिंह की जगह लेंडर पेस और महेश भूपति की जोड़ी होती तो बात शायद स्वर्ण पदक पर जाकर ही खत्म होती. हाय रे ! हमारी किस्मत एक स्वर्ण पदक तो मिलता ही.
तीसरे दिन हमें जिस खेल से सबसे ज़्यादा उम्मीद थी वह थी स्नूकर टीम इवेंट की स्पर्धा जहां फाइनल मुकाबले में हमारा मुकाबला चीन से था. सेमीफाइनल में हमने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को एक तरफ़ा मुकाबले में 3-0 से हराया था, लेकिन इस बार हमारे सामने चीन था. चीन जिसका नाम सुनते ही हमारे माथे पर पसीना आने लगता है और हुआ भी ऐसा ही. स्नूकर टीम इवेंट में हमें केवल रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा. लेकिन अगर यह फाइनल मुकाबला भारत में खेला जा रहा होता तो शायद परिणाम कुछ और होता. इन खेलों के अलावा हमने भारोत्तोलन साइकलिंग, सॉफ्ट टेनिस, शूटिंग में बहुत लचर प्रदर्शन किया जिसके कारण ऐसा लगने लगा कि अब पदक पाना बहुत कठिन है.
लेकिन इन सब में एक बात गौर करने वाली यह है कि हम कहते रहते हैं कि ‘अगर ऐसा होता या वैसा तो.’ उदहारण के तौर पर, जैसे अगर टेनिस में लेंडर पेस और महेश भूपति की जोड़ी खेल रही होती तो हम स्वर्ण पदक जीतते, स्नूकर में किस्मत होती तो स्वर्ण पदक हमारे नाम होता. और इन सबसे से बढ़कर अगर यह खेल भारत में होते तो हम ज़रूर अच्छा प्रदर्शन करते. जी हाँ, जीत नहीं सकते तो कुछ कहना ज़रुरी है. जैसे की अभिनव बिंद्रा ने कहा ‘मेरे साथ बेइमानी हुई है, मेरा अंतिम निशाना 9 अंक पर लगा था जबकि रेफरी ने उसे 7 अंक दिया. बिंद्रा जी लगता है सिर्फ आप के साथ ही गलत होता है.
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